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नज़राना इश्क़ का (भाग : 26)





निमय और जाह्नवी दोनों अभी तक जगह तय करने में लगे हुए थे। दोनो की समझ में नहीं आ रहा था कि वे सब किस जगह मिलें। जाह्नवी काफी देर से निमय की ओर देख रही थी मगर निमय ने कोई ध्यान नहीं दिया।

"तो कहां जाना फिक्स किया?" जाह्नवी ने सिर को ठोकते हुए कहा।

"हूँ….! तुम बताओ…!" निमय काफी देर तक सोचने कब बाद बोला।

"मतलब तुम्हारी बुद्धि गोल हो गयी?" जाह्नवी ने हँसते हुए तंज कसा।

"हां कम से कम तेरी तरह फैलकर चपटी तो न हुई न…!" निमय ने दांत पीसते हुए कहा।

"तो तू ही बता न…!" जाह्नवी ने उसके सामने आलथी पालथी मारकर बैठते हुए कहा।

"सिटी पैलेस..!" निमय ने धीरे से कहा।

"ओ महाराज! हमें बातचीत करना है बैठ के घूमने नहीं जाना, और तुम वहां गए तो बस एक एक चीज देखते रह जाओगे फिर तीन घंटे में आओगे, कहीं और…?" जाह्नवी ने उसे घूरते हुए कहा।

"तो बड़ी झील चलते हैं या हनुमान मंदिर..!" निमय ने अपने ऑप्शन्स रख दिये।

"झील से लौटने में तो शाम हो जाएगी, मंदिर भी शाम या सुबह ही जाना शुभ होगा और दोनो जगह भीड़ होगी ही, हमें आपस में बैठकर बात करनी है… इतना दूर आने जाने में घंटे लग जाएंगे फिर तू बात ही क्या करेगा…!" जाह्नवी ने कंधे उचकाते हुए जवाब दिया।

"तो तू ही बता दे मेरी माँ..!" निमय अपना सिर पकड़कर लगभग चिल्लाते हुए बोला।

"माँ बाहर है, मैं बहन हूँ तेरी!"  जाह्नवी ने अपने चेहरे की ओर इशारा करते हुए बड़ी मासूमियत से बोली।

"हाँ जानता हूँ बंदरिया, अब दिमाग मत खा…!" निमय उसके बालों की चोटी पकड़कर खींचते हुए बोला।

"छोड़…!" जाह्नवी उसका हाथ छुड़ाते हुए चिल्लाई। "घोंचू कही का, होने को पैदा भर तीन मिनट पहले हो गया, बुद्धि तो मुझसे तीन साल पीछे… नहीं नहीं तीन सौ साल पीछे है…!" जाह्नवी मुँह बनाते हुए टेबल पर हाथ टिकाकर बोली।

"हाँ आदिमानव काल की बंदरिया, अब जल्दी से जगह तो बता दे..! कहीं ऐसा न हो कि जगह डिसाइड होने से पहले उसका कॉल….!" निमय ने मुँह बनाकर कहा, इससे पहले वह अपनी बात पूरी कर पाता जाह्नवी का फ़ोन रिंग करने लगा। निमय ने उससे इशारों में पूछा कौन है..? जिसपर जाह्नवी अपने फ़ोन का स्क्रीन उसकी ओर करके दिखाती हुई इशारे से बोली अब क्या करें..! उसके फ़ोन के डिस्पले पर फरु नाम शो हो रहा था। निमय कंधे उचकाकर अपने दोनो हथेली उसकी ओर फैलाते हुए इशारा किया, जैसे कह रहा हो मैं की जानूँ..! जाह्नवी एक सेकंड उसको गुस्से से घूरी फिर झट से कॉल अटेंड कर ली।

"ओ स….सॉरी…! फोन कमरे में ही…!" जाह्नवी किसी तरह खुद को सामान्य रखने की कोशिश करते हुए बोली।

"कोई बात नहीं..! तो कहां तय किया आप दोनों ने..!" फरी ने जाह्नवी की बात को काटते हुए बोली।

"यार ये आप आप बोलना बन्द करो न तुम..! दोस्तों में ये अच्छा लगता है क्या..!" जाह्नवी मासूम से स्वर में अपनी नाराजगी जाहिर करते हुए बोली।

"जी… म.. मतलब कोशिश करूंगी, टाइम तो लगेगा न!" फरी अपने लड़खड़ाते स्वर संतुलित कर बोली।

"वेरी गुड!" जाह्नवी ने गर्व से कहा। जिसपर निमय उसे मुँह बनाकर घूरा, जाह्नवी मुक्का बनाकर हाथ उठाते हुए उसकी ओर बढ़ी।

"हाँ.. तो मिलना कहाँ है ये तो बता दो…!" उधर से विक्रम का स्वर उभरा।

"भाई.. आप मुझे बात करने दो न..!" फरी बोली, ऐसा लग रहा था मानो दोनो फोन को लेकर झगड़ा कर रहे हों।

"कब से वही तो कर रही हो..!" विक्रम ने कहा, जाह्नवी उन दोनों की बातें सुनकर चुप हो गयी थी।

"हां तो हम तुम्हारे घर आ रहे हैं, वहां से पास वाले पार्क में चले जायेंगे, अभी वहाँ भीड़ भी नहीं होगी।" कहते हुए विक्रम ने कॉल काट दिया।

"ये हमारा घर कहाँ है ये कैसे जानता है?" जाह्नवी ने बड़े आश्चर्य से पूछा।

"ये हाईटेक जमाना है आदिमानव काल की बंदरिया, म्हारी दुनिया अब फाइव जी तक पहुँच गयी और तुम्हें ये नहीं पता कि उसे मेरे घर का लोकेशन कैसे पता!" निमय ने बनावटी आश्चर्य जताते हुए तंज कसा।

"तूने उसे व्हाट्सएप्प पर लाइव लोकेशन भेजा है, अब समझ आया कि उसने फरी से फ़ोन क्यों छीना… गधा कहीं का..!" जाह्नवी उसके पीठ पर घुसे बरसाने लगी।

"बस बस गधी.. वर्ना तेरे सुकोमल हाथ दुख जाएंगे…!" निमय उसके हाथों को पकड़ते हुए बोला।

"तेरे से कम सुकोमल हूँ बे…!" जाह्नवी हाथ छुड़ाते हुए बोली।

"ये हाथ जिसपे पड़ जाता है ना….!" निमय फिल्मी स्टाइल में अपनी बांह थपथपाते हुए बोला।

"वो बोलता है अबे मरियल जा कुछ खा पी ले, फालतू पिट पीटा जाएगा…!" जाह्नवी जोर जोर से हँसते हुए बोली।

"रुक जा बंदरिया…!" निमय उसकी और लपका, जाह्नवी फिर कमरे से बाहर भागी। "जा माफ किया… जा के जल्दी तैयार हो जा..!" निमय दरवाजे पर खड़ा होकर जोर से हाँफते हुए बोला।

"ये बोल की जाह्नवी दी ग्रेट ने तुझ पिलपिले की पिलपिली निकाल दी.." जाह्नवी ने दाँत दिखाते हुए कहा। "जा तू भी तैयार हो…. उई माँ…! बचाओ कॉकरोच..!" जैसे ही उसने नीचे देखा जोर से उछल पड़ी।

"अब बताओ किसकी पिलपिली निकली बच्चू..!" निमय जोर जोर से हँसते हुए बोला, उसकी हँसी नहीं रुक रही थी, जाह्नवी उसे एकटक घूरने लगी जिस कारण उसने अपने मुंह पर हाथ रख लिया मगर उसकी हँसी कम नहीं हो रही थी।

◆◆◆◆

थोड़ी ही देर बाद जाह्नवी और निमय दोनो ही तैयार खड़े थे, तभी बाहर से हॉर्न की आवाज आई, निमय ने गेट खोला तो सामने सिंपल वाइट कार में फरी और विक्रम नजर आए, निमय तेजी से कार के ड्राइविंग गेट के पास गया, और विक्रम को घर आने के लिए बोला।

"अरे चल भाई.. थोड़ा मुझ गरीब के घर भी अपने पद चिन्ह छोड़ चल…!" विक्रम के मना करने पर निमय उसको खींचता हुआ बोला।

"अभी नहीं यार.., फिर कभी बाद में!" विक्रम उसकी ओर बड़े गौर से देखते हुए बोला।

"चल न यार…!" निमय ने बड़े प्यार से कहा।

"यार तू जानता है कि मैं तेरी बात नहीं टालता..! पर आज नहीं, वैसे भी आना जाना तो लगा ही रहेगा।" विक्रम ने मुस्कुराते हुए कहा।

"हे फरी..!" दूसरे गेट पर जाह्नवी आकर खड़ी हुई।

"अभी चलो, कार में बैठकर ही बात करते हैं।" विक्रम ने कहा।

"मम्मी हम जल्दी से आते हैं..!" कहते हुए निमय घर का गेट बंद कर कार में बैठ गया।

"तो फिर.. कैसा लग रहा है?" निमय ने कार में बैठते हुए बोला।

"यहां क्या कैसा लगेगा..?" जाह्नवी और विक्रम दोनो ने एक साथ पूछा, मगर फरी चुप रही। थोड़ी ही देर में सभी पार्क में पहुँच चुके थे, चारों एक साथ बैठे हुए थे।

"ये भी कॉलेज की तरह ही लग रहा है न!" विक्रम ने बात शुरू की।

"मुझे क्या पता..! मैं तो अब तक एक ही दिन ग्राउंड में आकर बैठी हूँ!" जाह्नवी ने विक्रम की ओर देखते हुए कहा।

"मैं तो निमय से पूछ रहा था!" विक्रम अपने सिर पर हाथ मारते हुए बोला। जिसपर जाह्नवी ने मुँह बनाते हुए प्रतिक्रिया दी।

"हां पर यहां कॉलेज के वो नमूने नहीं हैं!" निमय हँसते हुए बोला।

"मुझे तो समझ नहीं आता अब वो हमारी दोस्ती कैसे झेलेंगे…!" जाह्नवी चहकते हुए बोली।

"हां..! पहले दिन जब मैं यहां आयी थी तो सब आप दोनों की इतनी बुराई कर रहे थे कि क्या ही कहूँ! समझ नहीं आता लोग ऐसा क्यों करते हैं!" फरी गहरी साँस लेकर बोली।

"मुझसे भी मधुमक्खी की तरह चिपट गए थे, जब मैंने भाव नहीं दिया और उन्हें ये पता चल गया कि मैं उनके टाइप की नहीं हूँ तो बिचारो ने मुझे विलन बना दिया।" जाह्नवी धीरे से हँसते हुए बोली, जिसपर विक्रम की हँसी छूट गयी।

"मैं तो क्या कहूँ..! मैंने ध्यान ही नहीं दिया कभी।" निमय अपने आप को नियंत्रित कर हँसते हुए कहा।

"मतलब यहाँ बस मैं ही बचा हूँ जिसपर अब तक कोई काला साया नहीं पड़ा है..!" विक्रम जोर जोर से हँसते हुए बोला।

"क्या मतलब आपका भाई…!" फरी ने गुस्सा किया।

"अरे कुछ नहीं..! यहां सब पागलों की तरह पीछे पड़ जाते हैं ना..!" विक्रम ने मुँह बिचकाते हुए उतरे चेहरे से बोला।

"ओह्ह..! सॉरी भाई…!" फरी सिर झुकाकर बड़े प्यार से बोली।

"अब दुबारा सॉरी बोली तो पक्का पिट जाएगी..!" विक्रम ने गुस्सा किया।

"हाँ..! लिख के रख लो..!" जाह्नवी ने भी उसका साथ दिया।

"अरे क्यों तंग कर रहे बिचारि को..!" निमय फरी का बचाव करता हुआ बोला।

"देख लो किसी और को बुरा लग रहा है…!" जाह्नवी फरी को धीरे से धकियाते हुए बोली, जिसपर विक्रम और जोर से हँसने लगा, निमय बस जाह्नवी को घूरता रहा।

"अच्छा छोड़िए ये सब बात.. कल का क्या प्लान है?" फरी ने बातें बदलते हुए कहा।

"कैसा प्लान..!" निमय ने पूछा।

"अरे होली का! तुम्हें कुछ याद भी रहता है कि नहीं निम्मी…!" विक्रम अपने गाल पर हाथ रखकर सोंचने की मुद्रा बनाते हुए बोला।

"होली का कैसा प्लान… रंग लगाओ होली खेलो बस..!" जाह्नवी ने हँसते हुए कहा।

"हां वही…! बहुत मजा आएगा न..!" फरी ने मुस्कुराते हुए कहा। निमय की नज़रें उसके चेहरे पर टिक गयीं मानो वह उसकी यही मुस्कान देखने को बेताब हो। निमय अपनी वास्तविक दुनिया से जुदा होकर खोता जा रहा था, फरी का भी ऐसा ही कुछ हाल था वो दिन दुनिया से बेखबर होकर निमय की आँखों में अपना अक्स देखकर मुस्कुराए जा रही थी। एक पल को उसे ऐसा महसूस हुआ मानो सबकुछ रुक सा गया हो, जैसे उसे सबकुछ मिल सा गया हो। उसकी वो सारी खुशियां, सारी मुस्कुराहटें जिनपर उसका हक था वो उसे मिल गयी थी। निमय खुद को काबू करने की कोशिश कर तो रहा था मगर उसे कामयाबी हासिल नहीं हुई, उसका दिल कह रहा था कि अगर जानी ने फरी को दोस्त के रूप में स्वीकार किया है तो उस रूप में भी अवश्य ही करेगी जिस रूप में उसका दिल चाहता है। पल भर को जैसे हवाएं रुक सी गयी, शोर थम सा गया, जो जहां था वहीं का वहीं रह गया, कुछ था तो बस एक दूजे की आँखों में उभरी उन दोनों की तस्वीर…!

"अहं खौ खौ…!" जाह्नवी ने झूठ मुठ का खाँसा, जिसे सुनकर दोनों की तंद्रा भंग हुई, दोनो ने एक दूसरे की ओर से नजरें फिरा ली, वे जाने क्यों अपने अंदर बेहद शर्मिंदगी महसूस कर रहे थे। निमय का दिल फिर से भारी हुआ जा रहा था, उसकी आँखों में आँसू भर आये।

"क्या हुआ निम्मी..!" विक्रम, निमय के कंधे को सहलाते हुए पूछा।

"अरे कुछ नहीं, नौटंकी कर रहा होगा, इसी में तो उस्ताद है।" जाह्नवी ने मुँह बनाते हुए कहा, वह जानती थी कि निमय के आँसू सच्चे है मगर वो इसे जाहिर नहीं होने देना चाहती थी।

"अच्छा फरु तुम यहीं बैठो, हम पानी लेकर आते हैं..!" कहते हुए विक्रम इशारे से जाह्नवी को अपनी ओर बुलाया, जाह्नवी अपने मन में हजारों उलझने लिए उसकी ओर बढ़ी, उसे समझ नहीं आ रहा था कि विक्रम अभी क्या कहेगा…!

क्रमशः…!


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5 Comments

🤫

28-Feb-2022 12:42 AM

कहानी अच्छी जा रही है।👍👍👍

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Pamela

03-Feb-2022 03:09 PM

बहुत बढ़िया...

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Aliya khan

03-Feb-2022 12:23 AM

बहुत खूबसूरत आपकी कहानी है ! याद दिलाती हमको नानी है !

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